आ काले मतवाले मेघ
ओ काले मतवाले मेघ,आ खिल जाये हर जन का मन,
झूम-झूम यूँ बरस कि जिससे,मिट जाये धरती की तपन ।
जेठ आषाढ़ की गरमी से,अंगार बनी धरती हमरी,
हम राह तकत हैं हार गये, तब मुश्किल से आया सावन ।
घर भीतर बैठे थे उदास,दिल चाहे बाहर निकलन को,
सब सूख गये डाली पत्ते,बन आँच बहे जलती सी पवन ।
पंछी कर रहे हैं त्राहि-त्राहि और प्राणी सब बेहाल हुए,
कुछ और अगर ना बरसे तुम,तो रुक जायेगी हर धड़कन ।
हर आँख लगी आकाश दिशा,है ध्यान सभी का मेघों पर,
आ मेघ करें तेरी पूजा और गायें तेरे मंगल वन्दन ।
तेरे आने से उपजेगा,खेतों में सोना और चाँदी,
मत तोड़ हमारी आशाएँ, किस घड़ी करें तेरा दर्शन ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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