आज सो रहे हैं सभी
आज सो रहे हैं सभी कूलरों की हवा में,
जहर घोल रहे स्वयं प्रकृति की दवा में ।
स्वास की बीमारी,बढ़ रही ज्यूं बेशरम,
और दमा पनप-पनप पहुंच चुका है चरम,
जोड़ दर्द,गठिया फैला है रवा-रवा में,
आज सो रहे हैं सभी कूलरों की हवा में ।
खा रहे हैं आज हम डिब्बे का कोल्ड फूड,
खाना बनाने को आज नहीं बन रहा मूड,
फुलके बनाना भूलते जाते हैं लोग तवा में,
आज सो रहे हैं सभी कूलरों की हवा में ।
टी.वी.देखते हैं जब भी वक्त हो खाली,
आँख की बीमारियाँ सब हमने बुला लीं,
शुद्ध देकर एक में, बीमारी लेते सवा में,
आज सो रहे हैं सभी कूलरों की हवा में ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
READ MORE POETRY BY PRABHA JI CLICK HERE
DOWNLOAD OUR APP CLICK HERE