अमूल्य धरोवर
प्रकृति ने दिया है जल अमूल्य धरोहर,
नदी,झरने, कुएँ, तालाब और सरोवर ।
संभाल हम न सके तो है भूल हमारी,
प्रकृति ध्यान रख रही हमारा बराबर ।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लगाये गिद्ध दृष्टि,
राष्ट्र तक अब मर रहे हैं जल को लडलड़कर ।
हो गये हैं वर्ष बासठ मिले आजादी,
कुव्यवस्था के घिरे अब भी हैं बवंडर ।
प्रशासन के लिये है कामधेनु सा उपहार,
हर वर्ष बाढ़ सूखे का बजट है बराबर ।
जल देवता तो है मगर हम नहीं पुजारी,
तभी तो सहना पड़ेगा प्रकृति का कहर ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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