कुंडली में उच्च ग्रह यानि कि शुभ ग्रह शुभ परिणाम देता है तो वहीं नीच ग्रह अशुभ परिणाम देता है। लेकिन कई परिस्थिति में उच्च ग्रह भी अशुभ परिणाम देने लगता है।
किसी ज्योतिष के जानकार से आपने उच्च और नीच ग्रहों के बारे में सुना तो जरूर होगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर जातक की कुंडली में कोई न कोई ग्रह उच्च का तो कोई नीच का ज़रूर होता है। इसे अगर आसान भाषा में समझाए तो जो भी ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होता है वह उच्च ग्रह कहलाता है और कुंडली में कमज़ोर या निर्बल ग्रह का होना नीच का होना कहलाता है। उच्च ग्रह को शुभ ग्रह और नीच के ग्रह को अशुभ ग्रह कहते हैं।
ज्योतिष के अनुसार किसी जातक की जन्मकुंडली में जब कोई ग्रह उच्च यानि शुभ स्थिति में होता है तो उस ग्रह से संबंधित शुभ प्रभाव पूर्ण रूप से देने का कार्य करता है। वहीं यदि कोई ग्रह नीच का यानि कि अशुभ स्थिति में हो तो जातक को अपने जीवन में कई चुनौतियों से दो-चार करना पड़ सकता है।
इन कार्यों को करने से शुभ ग्रह भी देता है अशुभ फल
यदि कोई व्यक्ति गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त है और अपने से बड़ों का के साथ दुर्व्यवहार करता है या फिर पिता अथवा पिता तुल्य व्यक्तियों से दुर्व्यवहार करता हो तो उच्च के सूर्य भी उसे जीवन भर नीच का फल देते हैं। इसके अलावा कोई व्यक्ति अपनी मां, नानी या दादी का अनादर करता हो तो उस व्यक्ति को चंद्रमा के नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। जबकि अपने मित्र, भाई या भाई तुल्य लोगों के साथ विश्वासघात या गलत व्यवहार करने पर मंगल जातक को नीच का फल देना शुरू कर देते हैं।
इसके अलावा वो जातक किसी भी महिला, शिक्षकों, गुरुजनों, शिक्षा की सामग्री का निरादर या अपमान करते हैं उनको बुध अपने विपरीत फल देते हुए उसकी परेशानी बढ़ा देते हैं। गुरु बृहस्पति ग्रह तब अशुभ परिणाम देते हैं जब व्यक्ति किसी ब्राह्मण, देवी-देवता, घर के बड़े सदस्यों जैसे दादा, नाना या पिता आदि का निरादर या अपमान करता है।
वहीं यदि कोई जातक किसी गाय या गोवंश को सताता है या फिर किसी भी स्त्री का अपमान करता है तो शुभ स्थिति में भी होते हुए शुक्र व्यक्ति को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। जबकि कर्मफलदाता शनि देव उन जातकों को कष्ट देते हैं जो मांसाहार व शराब का सेवन करे, कुत्तों को सताए, घर के बड़े पुरुष सदस्यों जैसे ताऊ अथवा चाचा का अपमान या अनादर करें या कार्यस्थल पर काम चोरी करता है।
निम्नलिखित भावों में ग्रह उच्च के यानि की शुभ स्थिति में होते हैं :
संख्या ग्रह उच्च भाव / शुभ स्थिति
- सूर्य ग्रह लग्न यानि प्रथम भाव में विराजमान हों
- चंद्र ग्रह द्वितीय भाव में बैठें हो
- राहु ग्रह तृतीय भाव में विराजमान हों
- गुरु ग्रह चतुर्थ भाव में बैठें हो
- बुध ग्रह छठे भाव में विराजमान हों
- शनि ग्रह सप्तम भाव में बैठें हो
- केतु ग्रह नवम भाव में विराजमान हों
- मंगल ग्रह दशम भाव में बैठें हो
- शुक्र ग्रह द्वादश भाव में विराजमान हों
किसी ग्रह के नीच का होने पर करें
किसी जातक की कुंडली में अगर सूर्य नीच का हो तो सूर्य को जल अर्पित करने के साथ ही तांबा धारण करना चाहिए। साथ ही अगर चन्द्रमा नीच राशि में हो तो पूर्णिमा का उपवास रखने के साथ ही शिव जी की पूजा करें। जबकि मंगल के नीच राशि में होने पर नमक का सेवन कम कर देना चाहिए। साथ ही विद्यर्थियों की सहायता करें। अगर बुध नीच का हो तो देर तक मत सोयें, विष्णु जी की उपासना करें, आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं।
अगर बृहस्पति नीच राशि में हो तो झूठ मत बोलें, मांस-मदिरा से बचना चाहिए और अपने गुरु के साथ माता पिता की सेवा करना चाहिए। शुक्र के नीच राशि में होने पर चरित्र पर नियंत्रण रखना चाहिए साथ ही हनुमान जी की उपासना करें। वहीं अगर शनि नीच का हो तो वाहन चलाने में सावधानी रखना चाहिए, कृष्ण जी की प्रतिदिन उपासना करें।