हर बाबुल की ये हसरत है,
कब बैठे बेटी डोली में ।
शहनाई का संगीत बजे,
भर दूँ खुशियां सब झोली में ।।
हर फूल की रंगत गलों पर,
मेंहदी का रंग हथेली में ।
खुद खोली में रह लेगा वो,
बेटी हो मगर हवेली में ।।
आंखों में है रिमझिम सावन,
हर दुआ मगर है झोली में ।
बेटी जाने के बाद नजर,
बेटी ढूंढे हमझोली में ।।
बाबुल की टोली छोड़ चली,
मिल गई पिया की टोली में,
जब याद सतायेगी तेरी,
ढूढेंगे तुझे रंगोली में ।।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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