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      || बाबुल दे रहा दुआ बेटी ||

      भारी मन से ही सही मगर बाबुल दे रहा दुआ बेटी,
      मैके के सुख दुख छोड़ यहीं अपना ससुराल सजा बेटी ।

      अब तक तू मेरे आँगन की
      चिड़ियों की सखी सहेली थी ।
      भाई बहनों के साथ यहीं
      रोई, गाई और खेली थी ।

      इस आँगन की यादें ले जा और रखना संग सदा बेटी,
      मैके के सुख दुख छोड़ यहीं अपना ससुराल सजा बेटी ।

      आँगन के आमों की शाखों,
      पर तू झूला झूली थी ।
      कोयल की कू कू सुन तू भी
      कू कू करना ना भूली थी ।

      अमराई की ठंडक ले जा लागे ना गर्म हवा बेटी,
      मैके के सुख दुख छोड़ यहीं अपना ससुराल सजा बेटी ।

      मुस्कान तेरी मेरे घर की,
      खुशियों को न्यौता देती थी
      हुईं उदास जो तुम, खुशियाँ,
      गम की नदिया में गोता थी ।

      तू माफ हमें करती जाना हुई हमसे कोई खता बेटी
      मैके के सुख दुख छोड़ यहीं अपना ससुराल सजा बेटी ।

      बाबुल को पुल्कित कर देता,
      बेटी का मुस्काता मुखड़ा ।
      माँ के सीने की बोटी है,
      पिता के दिल का है टुकड़ा ।

      बह रहा आँख से खून निरा, करते हुए तुझे बिदा बेटी
      मैके के सुख दुख छोड़ यहीं अपना ससुराल सजा बेटी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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