|| बचपन के पंछी ||
बचपन के पंछी
बचपन में दिखते थे पंछी,कहाँ गये सब मैया,
तोता,मैना की सरगम,चीं चीं करती गौरैया ।
सूरज की किरणों से पहले का जलतरंग संगीत,
नीड़ में बैठे बच्चों को चोगा देने की रीत,
कानों में मिश्री सी लगती थी बहती पुरवैया,
बचपन में दिखते थे पंछी,कहाँ गये सब मैया ।
कभी तुम्हारे सूपे से कनकी चुनते जाते थे,
पानी में अठखेली करते तब कितना भाते थे ।
मोर कभी करते दिख जाते थे तब ता ता थैया,
बचपन में दिखते थे पंछी,कहाँ गये सब भैया ।
घर के पीछे के बरगद पर सूओं की चौपालें,
अब तो लगता है बस यादों से मन बहला लें ।
उस मीठे कलरव के आगे फीके सभी गवैया,
बचपन में दिखते थे पंछी,कहाँ गये सब मैया ।
कहाँ गये सब पंख पखेरू कहाँ गई चंचलता,
मन प्राणों को सूना आंगन व बरगद है खलता,
कैसे भी ला दो माँ संध्या पहले सी सुरमैया,
बचपन में दिखते थे पंछी,कहाँ गये सब मैया ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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