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    Friday, April 26, 2024
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      || बदल डाला है रूप ||

      बदल डाला है रूप

      शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप,
      ग्रीष्म में छाया दिखे ना,शीत में ना धूप ।

      बिल्डिंगे ही बिल्डिंगे हर ओर बस तनती दिखें,
      किन्तु बेल,फूल की बगिया नहीं बनती दिखें,
      भांति-भांति हो रहे पर्यावरण पर आक्रमण,
      हर विधि से प्राण वायु अशुद्धियां सनती दिखे ।

      ढल जाते हैं लोग प्रदूषण के ही अनरूप,
      बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप ।

      जिस गति से बढ़ रही है कीमतें जमीन की,
      सोचते न लोग अब तो मंजिलें दो तीन की,
      जितनी अधिक मंजिलें उतनी ही भीड़ हो जमा,
      धीरे-धीरे उड़ रही है शुद्धता यकीन की ।

      दूर कर सकें प्रदूषण कोई बनता नहीं वो सूप,
      बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप ।

      वाहनों की भीड़ से भरी-भरी सड़कें दिखें,
      धुएं के गुबार से डरी-डरी सड़कें दिखें,
      कोशिशें सरकार की सब मुंह के बल ही गिरें,
      डबल डेकर बसों से जुड़ी-जुड़ी सड़कें दिखें ।

      हुए धराशायी सब सरकारी प्रयत्न के स्तूप,
      बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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