बदल डाला है रूप
शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप,
ग्रीष्म में छाया दिखे ना,शीत में ना धूप ।
बिल्डिंगे ही बिल्डिंगे हर ओर बस तनती दिखें,
किन्तु बेल,फूल की बगिया नहीं बनती दिखें,
भांति-भांति हो रहे पर्यावरण पर आक्रमण,
हर विधि से प्राण वायु अशुद्धियां सनती दिखे ।
ढल जाते हैं लोग प्रदूषण के ही अनरूप,
बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप ।
जिस गति से बढ़ रही है कीमतें जमीन की,
सोचते न लोग अब तो मंजिलें दो तीन की,
जितनी अधिक मंजिलें उतनी ही भीड़ हो जमा,
धीरे-धीरे उड़ रही है शुद्धता यकीन की ।
दूर कर सकें प्रदूषण कोई बनता नहीं वो सूप,
बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप ।
वाहनों की भीड़ से भरी-भरी सड़कें दिखें,
धुएं के गुबार से डरी-डरी सड़कें दिखें,
कोशिशें सरकार की सब मुंह के बल ही गिरें,
डबल डेकर बसों से जुड़ी-जुड़ी सड़कें दिखें ।
हुए धराशायी सब सरकारी प्रयत्न के स्तूप,
बड़े शहरों का प्रदूषण ने बदल डाला है रूप ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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