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      || बजबजाती नालियाँ ||

      बजबजाती नालियाँ

      बरसात में यूँ बजबजा रही शहर की नालियाँ,
      सफाई व्यवस्था को ज्यूं सुना रही हो गालियाँ ।

      लाख बन्द करो बदबू जायेगी घुस नाक में,
      काट रही गंदगी मच्छर के जैसे आँख में,
      बड़े नाले जीजा हों ज्यों छोटी नाली सालियाँ,
      बरसात में यूँ बजबजा रही शहर की नालियाँ ।

      गुनगुना रहे हैं मच्छर जैसे पूरे जोश में,
      आदमी आ पाये ना मलेरिया से होश में,
      चला रहे हैं आदमी पर हम समय दुनालियाँ,
      बरसात में यूँ बजबजा रही शहर की नालियाँ ।

      हैजा,अतिसार से भरे पड़े हैं अस्पताल,
      खुश हैं बहुत डॉक्टर मरीज की खींचे खाल,
      फैल रही वट वृक्ष सी बीमारियों की डालियाँ ।

      जिंदा रहना है अगर ध्यान दें इस ओर भी,
      नालियाँ व रोड, गलियाँ घर के कोने छोर भी,
      साफ रखकर कर सकते हम अपनी रखवालियाँ
      बरसात में यूँ बजबजा रही शहर की नालियाँ ।

      बीमारी पर अंकुश लगायें खिड़की की जालियाँ,
      गड्ढे डबरे भर,चलें, बीमारी पर दुनालियाँ,
      होगी चारों ओर अपने महकती खुशहालियाँ,
      बरसात में गर बजबजायें न शहर की नालियाँ ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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