बरखा की रिमझिम बूँदों से
बरखा की रिमझिम बूँदों से,धरती पर बिछी हरी मखमल,
सनन-सनन चली मधुर पवन, मन हुए सभी के अब चंचल ।
नवयौवन की मादकता से,ज्यों झूम उठी डाली-डाली,
खिल गये फूल सुन्दर अनुपम,रसभरी धरा है अब जल-थल ।
जुगनू चमके जब बादल में,चुनरी में जड़े नगीने हैं,
कहीं पिहू-पिहू कहीं कुहू-कुहू,कभी पपीहरा कभी कोयल ।
हैं भरे-भरे नदियाँ नाले,कहीं उफन-उफन जल धार बहे,
हर डगर-डगर अब धुली-धुली,हर खेत में फैला जल निर्मल ।
सावन में मेलों के झूले,राखी और नागपंचमी भी,
हर दिन मुस्काता,मदमाता,हर दिन त्यौहार की हलचल ।
खेतों में सोना उपजेगा,है सबके मन में भाव यही,
आँखों में सुख की आस लिये, निकले किसान धर कांधे हल ।।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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