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      || बरसात के दिन आये ||

      बरसात के दिन आये

      बरसात के दिन आये,बरसात के दिन आये,
      सावन के मेलों में,नगमात के दिन आये ।

      धरती पर बिछ गई है, हर ओर नई चादर,
      बिजली का शोर लेकर,गरजात के दिन आये ।

      खेतों में भरा पानी,हुई प्रकृति फिर धानी,
      खलिहान अब भरेंगे,सौगात के दिन आये ।

      हैं तृप्त सभी नजरें, खुशियों से भरे आँचल,
      कर लेंगे काम मिलकर,बढ़े हाथ के दिन आये ।

      हो जायेंगी अब पूरी, जन-जन की जरुरत भी,
      खलिहान और खेतों की,करें बात के दिन आये ।

      धन धान्य से भर जायें, अपने भी आँगन अब,
      खुशियों की सज के आई,बारात के दिन आये ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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