मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की यात्रा प्रारंभ कर देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की तरफ जाना उत्तरायण कहलाता है जबकि कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाने पर दक्षिणायण की यात्रा शुरू होती है। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा जाता है।
मकर संक्रांति पर सूर्ददेव अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। ज्योतिष में मकर राशि के स्वामी शनिदेव होते हैं। सूर्य और शनि देव की आपस में शत्रुता का भाव रखते हैं लेकिन जब सूर्यदेव स्वयं शनिदेव से मिलने जाते हैं तो यह त्योहार पिता- पुत्र के मिलने के रूप में मनाया जाता है। इस तरह से मकर संक्रांति पर सूर्य देव की उपासना और शनि से सबंधित चीजों की दान करने से कुंडली में सूर्य और शनिजनित दोष दूर हो जाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब मकर संक्रांति पर सूर्यदेव मकर राशि में प्रवेश करते है तो इस दिन से मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है। इस दिन से शरद ऋतु का समापन और बंसत ऋतु की शुरुआत होती है। मकर संक्रांति के बाद से दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है।
14 या 15 जनवरी, कब मनाई जाएगी मकर संक्रांति?
— 2YoDoINDIA News Network (@2yodoindia) January 13, 2023
1. कब है मकर संक्रांति
2. मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त
3. मकर संक्रांति का महत्व
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मकर संक्रांति से देवताओं की रात समाप्त हो जाती है और दिन की शुरुआत होती है। इस तिथि से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। ऐसी मान्यता है भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपने प्राण का त्याग किया था।
मकर संक्रांति पर गंगासागर में स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंचकर सागर में जाकर मिली थी। इस कारण मकर संक्रांति पर गंगासागर में स्नान का महत्व है। इस तिथि पर भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग हिस्सों में कई तरह से मनाया जाता है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को लोहड़ी के नाम से मनाते हैं। दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में जबकि असम में भोगली बिहू के नाम से जाना जाता है। बंगाल में मकर संक्रांति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है। उत्तर और बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति पर पतंगें उड़ाई जाती हैं।
माघ मास में मकर संक्रांति पर जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तब प्रयाग के पावन संगम तट पर सभी देवता, दैत्य ,किन्नर और मनुष्यों के समूह में स्नान करते हैं।
मकर संक्रांति को प्रमुख तौर पर खिचड़ी का पर्व माना जाता है और इस दिन खिचड़ी का दान करने का विशेष महत्व भी माना गया है।
मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा गया है और इस दिन तिल के दान का खास महत्व माना गया है। इस दिन तिल का दान करने से शनि दोष दूर होता है।
मकर संक्रांति पर गुड़ का दान करने पर गुरु ग्रह की कृपा प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पर घी और नमक का दान करने की विशेष महत्व होता है। इससे जीवन में भौतिक सुख-सुविधा की प्राप्ति होती है और बुरा समय टल जाता है।