|| बेटी की सीख ||
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना,
झुर्रियों की दर दीवार को श्मशान न बनने देना,
कभी मौके में भूल से जला पराठा नहीं था क्या,
दिया मम्मी ने ऐसी भूल पर चाँटा नहीं था क्या,
किया झाड़ू बुहारू घर का फर्राटा नहीं था क्या,
नहीं निकला था कचरा मम्मी ने डाँटा नहीं था क्या,
सास की वैसी डाँट को तुम घमासान ना बनने देना,
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना ।
कभी भैया भी चोटी खींच,भाग दिया नहीं था क्या,
उड़ेल कर सियाही लिखा खराब किया नहीं था क्या,
कभी गुल्लक समेत उसने सब लिया नहीं था क्या,
उसे पिटने से बचाने, माफ किया नहीं था क्या,
समझ देवर को भाई भवों की म्यान न तनने देना,
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना ।
पहन कर फ्राक तेरी स्कूल क्या कभी न गई थी,
पच्चीसों बार बहनों से कहा सुनी न हुई थी,
गई थी वो सिनेमा तुम मगर भले न गई थी,
तुम्हारी घृणा क्या दूजे ही दिन चली न गई थी,
इसी तरह ननद की भूल को मचान न बनने देना,
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना ।
पिता की डाँट पर पलभर में क्या तुम डर न जाती थी,
इशारे आँख के पर काम सारे कर न जाती थी,
कभी गुस्से में देख आँख क्या तुम भर ना जाती थी,
पिता की आन पर सौ बार क्या तुम मर ना जाती थी,
ससुर की आन पर भी जीभ को जुबान ना बनने देना,
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना ।
अगर किस्मत की धनी हो तो घर में वृद्धजन होंगे,
मृदु व्यवहार से वो सब तुम्हारे आत्मजन होंगे,
पड़ोसी हो या हो नौकर तेरे पर मधु वचन होंगे,
समझ ले शूल तेरी राह के खुद ही सुमन होंगे,
कभी कर्तव्य से तुम स्वयं को अंजान न बनने देना,
घर को घर बनाये रखना तुम मकान ना बनने देना ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
Adbhut words ma’am
Mam ur lines are always touching…not becoz of ur topic it’s the magical words…what I believe 🙏