नमस्कार मित्रों,
उस स्कूली दौर में निब पेन का चलन जोरो पे था..!
तब कैमल और चेलपार्क की स्याही प्रायः हर घरो में मिल ही जाती थी और जिन्होंने भी पेन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे !
महीने में दो-तीन बार निब पेन को गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है।
हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो लड़कियों की पेन ठीक से नहीं चलने पे ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा कर लेता था!!!
दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पेन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पे लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था..!
निब पेन कभी ना चले तो हम में से सभी ने हाथ से झटका के देखने के चक्कर में आजू बाजू वालो पे स्याही जरूर छिड़कायी होगी!!
कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, वल्कि पैंट पर भी छिडक लेते थे ताकि घरवालों को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है!!
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.
लेखक
राहुल राम द्विवेदी
” RRD “
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