छा रहे बादल
काले-काले घने-घने छा रहे बादल,
रिमझिम संगीत मधुर गया रहे बादल ।
जीव जन्तु हो या प्राणी चाहे जानवर,
सभी के मनभावने हैं, आ रहे बादल ।
आर्द्र हवा के झकोरों से भरे-भरे,
कभी इधर,कभी उधर जा रहे बादल ।
सीप से निकले हुए मोती से धवल श्वेत,
आकाश से पानी की बूँद ला रहे बादल ।
कर श्रंगार प्रकृति का,हरियाली ओढ़नी,
वसुन्धरा को मान से उढ़ा रहे बादल ।
गरड़-गरड़ बज रहे हैं ढोल नगाड़े,
फुहार से शहनाई भी बजा रहे बादल ।
रूठकर कहीं-कहीं कर देते अति वर्षा,
बाढ़ से फिर देखो गजब ढा रहे बादल ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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