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      || चलना जो सीखें हम | CHALNA JO SEEKHE HUM ||

      चलना जो सीखें हम

      चलना जो सीखे हम तो उंगली पकड़ कर चलाया,
      गिरे हम कहीं अगर तो झट से हमें उठाया ।
      दुनिया की मुश्किलों ने जब जब हमें था घेरा,
      थपकी की राहतों से तब तब हमें सुलाया ।।

      हर पल में हर घड़ी में था प्यार का सहारा,
      बीमार में खुशी में था दुलार का सहारा ।
      तन्हाईयों में भी हम तन्हा नहीं कभी थे,
      हर सुनी राह में तुम आधार थी हमारा ।।

      इक ओर फकत थीं तुम,इक ओर थी खुदाई,
      जाती नहीं सही अब हमसे तेरी जुदाई ।
      हरसू तेरी कमी अब महसूस हो रही है,
      आई ना अगर तुम तो आ जाऐगी रुलाई ।।

      तेरे सिवा किसी को हम मानते नहीं थे,
      दुनियां की बेरुखी हम पहचानते नहीं थे ।
      दुख के,मायूसियों के,आये भी लाख तूफाँ,
      होती है किसी गर्दिश हम जानते नहीं थे ।।

      दुनियाये-दरिया में तुम पतवार थीं हमारी,
      हर गम में साथ दे जो तलवार थीं हमारी ।
      हर धूप की थी राहत एक ठंडी छाँव थीं तुम,
      मंझदार हो तो हो कश्ती पार थीं हमारी ।।

      आ देख तेरे बिन माँ किस तरह जी रहे हैं,
      झर झर रहे हैं आँसू सिसकी को पी रहे हैं ।
      तेरी जुदाई से दिल ऐसा हुआ है जख्मी,
      धागा है ना सुई है अश्कों से सी रहे हैं ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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