|| चन्द्र किरण सी आई है | CHANDRA KIRAN SI AAYI HAI ||
चन्द्र किरण सी आई है
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है,
रोम रोम पुल्कि है मेरा जब से गोद में आई है ।
फूल पंखुड़ी जैसे इसके हाथ-पाँव अति कोमल है,
आँखें कुछ खरगोश सरीखी पर थोड़ी सी चंचल है ।
होठों में प्रकृति की सारी सुन्दरता आ समाई है,
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है ।
कन्या धन पाकर आँचल में उड़ी उड़ी मैं चलती हूँ,
कभी भाग्य पर इठलाती,कभी खुशी से मचलती हूँ ।
इसकी निश्छल हँसी में जैसे फूलों की तरूणाई है,
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है ।
गोदी में पाकर इसको,मन हर्षित-हर्षित रहता है,
कभी किसी से,कभी किसी से,कभी स्वयं से कहता है ।
जितनी बार भी देखो इसको नई छवि दिखलाई है,
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है ।
कब गूँजेगी आँगन में इसकी मनमोहक किलकारी,
कब नन्हीं चिड़ियों को दाना डालेगी सुकुमारी ।
इसी तरह की अभिलाषायें अंतर्मन में आई हैं,
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है ।
एक दिवस जब दूल्हे राजा घोड़ी पर चढ़ आयेंगे,
डोली में बैठाकर इसको दूर कहीं ले जायेंगे ।
राजा हो या रंक सभी ने तो ये रीत निभाई है,
मेरी ममता के आँचल में चन्द्र किरण सी आई है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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So much delicate and soft words are used in the poems. Really mind blowing work.