चित्तौड़गढ़ की रानी
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी,
राजा रतन सिंह की पत्नी नाम जिसका पदमिनी ।
पीती थी पानी तो गले की नसों से दिखता था,
फूल गुलाब भी उसके होंठ के सम्मुख न टिकता था ।
सौंदर्य की हवा उड़ी थी हर दिशा ज्यों दामिनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौंदर्य स्वामिनी ।
अलाउद्दीन खिलजी को भी पदमिनी की धुन लगी,
चित्तौड़ की तरफ तुरंत खिलजी की सेना भागी ।
बार बार थी हार के लौटी मुगलों की सेना घणी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौंदर्य स्वामिनी ।
अंत में खिलजी को ना किसी तरह विजय मिली,
पदमिनी को देखकर ही लौट जाऊँगा दिल्ली ।
शर्त खिलजी की गले की फाँस जैसी थी बनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी ।
सोचा और विचार किया अंत में निश्चय किया,
मात्र प्रतिबिंब दिखाना पदमिनी का तय किया ।
हो गया मूर्छित वो मात्र प्रतिबिंब देख कामिनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी ।
छोड़ने गये थे राजा खिलजी को गढ़द्वार पर,
बन गये बंदी रतन सिंह छलकपट आधार पर ।
चाहिये जिन्दा जो राजा सौंप दिजे पदमिनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौंदर्य स्वामिनी ।
शर्त है मंजूर आऊँगी मैं दसियों सहित,
मात्र सत्तर दसियों से आपका न कुछ अहित ।
सखिवेश में योद्धा, कहार सभी थे रण के धनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी ।
जिस तरह राजा को छल से खिलजी ने बंदी किया,
छल से राजा को छुड़ा पत्थर से था उत्तर दिया ।
तिलमिलाता रह गया खिलजी ये क्या जुगत बनी,
चित्तौड़गढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी ।
पूरी ताकत से करी चढ़ाई फिर गढ़ पर तुरंत,
वीरगति पाते-पाते राजपूतों का हुआ अंत ।
राजपूतानियों सहित जौहर में जली पदमिनि,
चित्तौडग़ढ़ की रानी अप्रतिम सौन्दर्य स्वामिनी ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “