दफ्तर में पानी भरती थी
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई,
बेटा एक था जिसको जल्दी ही वो ब्याह लाई ।
माता-पिता ने बेटी को था भरसक सब सामान दिया,
बेटी के सुखी भविष्य को भी जैसे था मैं लिया ।
पर अज्ञानी सास ननद ने उल्टा ही था ठान लिया,
तंग बहू को करने में ही सुख अपना था मैं लिया ।
दिन भर ताने मसलें दे दे सबने बहू सताई,
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई ।
माँ के कहने में आकर पति ने भी ना साथ दिया,
अक्खड़पन में बसा बसाया घर ही अपना ताप लिया ।
माँ बहन के कहने से पत्नी को जूता लात दिया,
चार भाई की बहन जिसे पति ने था आघात दिया ।।
लाड़-प्यार में पली कली थी मार भी ना सह पाई,
दफ्तर में पानी भारती थी महिला हीरा बाई ।
एक रोज दफ्तर में उसकी बेटी दौड़ी-दौड़ी आई,
धुआं निकल रहा है घर से,कुछ ऐसा संदेश लाई ।
हीरा बाई को थोड़ी-थोड़ी बात समझ में आई,
बोली लगता है बेटी ने बहू को आग लगाई ।।
झटपट हीरा बाई ने उल्टी-सीधी बात बनाई,
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई ।
चला केस पर साक्ष्य बिना हुआ नहीं उनका कुछ भी,
साथ समय के धीरे-धीरे गई सभी बातें बुझ भी ।
प्रभु के खाते में किन्तु कब रहता है कुछ अनबुझ भी,
लेता रहता है जैसे प्रभु पीड़ित मानव की सुध भी ।।
हीरा बाई की बेटी ब्याहकर पति के घर आई,
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई ।
सेना में भर्ती दमाद,बदली होकर दूर हुए,
सुख शान्ति की खबर मात्र चिठ्ठी पत्री मजबूर हुऐ ।
ऐसी ही आई चिठ्ठी पढ़ जिसको गम से चूर हुए,
सीने तब उनके भी जैसे दुखते से नासूर हुए ।
छोड़ दुध मुंहा बेटा, बेटी आत्मदाह कर धाई,
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई ।
रोते-रोते सारे जन तब बेटी के घर आये,
चिपका माँस दीवारों पर देख के दिल भर आये ।
शत प्रतिशत संदेह हुआ,फिर भी कुछ ना कर पाये,
सैन्य छावनी संग परदेस,लगा ज्यों मति हर आये ।।
जैसी करनी वैसी भरनी प्रभु चरितार्थ कराई,
दफ्तर में पानी भरती थी महिला हीरा बाई ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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