धुआँ-धुआँ है
धुआँ-धुआँ है हर तरफ बढ़ता हुआ धुआँ,
पेट्रोल का धुआँ कहीं डीजल का है धुआँ ।
क्षय रोग बढ़ रहे तो कहीं बढ़ रहा दमा,
हर ओर बढ़ रही बेधड़क बीमारियाँ ।
धरती से लेकर फैला आकाश तक ऐसा,
धरती पर पहुंच पाती ना सूर्य-रश्मियाँ ।
प्रकृति विनाश देखकर है रो रही धरती,
आम्ल वर्षा करते हुए रोये आसमाँ ।
दम घोटता है लाखों के महानगर में,
लगे देखने में सीधा सादा और बेजुबाँ ।
उड़ता हर दिशा में कारखानों से जहर,
मचाता बिना शोर किये ये तबाहियाँ ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
READ MORE POETRY BY PRABHA JI CLICK HERE
DOWNLOAD OUR APP CLICK HERE