आत्मा को चाहते भव सागर पार उतारना,
छोड़ दो तुम बेटियों को गला घोंट मारना ।
चाहते हो घर में तुम सुख-शान्ति सम्पन्नता,
छोड़ दो बहुएं जला,अपना घर उजाड़ना ।
चाहते समाज को तुम उन्नति के शिखर पर,
छोड़ दो देना तुम गृहलक्ष्मी को प्रताड़ना ।
चाहते हो पीढ़ियों तक नाम रहे रोशन तो,
छोड़ दो तुम कन्यारत्न की जड़ें उखाड़ना ।
हवा बहे सौहार्द्र की जिन्दा रहे संवेदना,
बेटियों को शिक्षा, ज्ञान, मान से सँवारना ।
प्रकृति की सबसे अनुपम कृति है बेटियाँ,
मान करना हृदय से यदि रोये तो दुलारना ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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