घना वृक्ष पीपल का
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था,
तोते, मैना,चिड़ियों का वह निवास था ।
खिड़की से दिखता था उनका उछलना,
इस डाल से उस डाल पर उड़ना,चलना,
चूजों का खेलना कभी-कभी मलचना,
उनकी हर क्रीड़ा का मुझे आभास था,
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था ।
पक्षी सभी पीपल के मेरे मित्र थे,
प्यारे-प्यारे सुन्दर से कुछ विचित्र थे,
प्रकृति के सभी अनमोल चित्र थे,
दाना-पानी मेरा दिया उन्हें रास था,
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था ।
एक दिवस कुछ लोग शाख छांटते दिखे,
दूजे दिन ही मुझे वे वृक्ष काटते दिखे,
पंछी फड़फड़ाते दिखे,दर्द बांटते दिखे,
बिखरे घोंसलों में बचा नहीं सांस था,
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था ।
बहुत दिन तक मेरी खिड़की भी न खुली,
उनकी मीठी बोली हवा में न घुली,
हो गई थी उनके बसेरों से धांधली,
सभी पक्षियों का हो चुका प्रवास था,
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था ।
बहुत दिवस बाद हवा से जो खुले पट,
दृश्य दिखा मुझे पूरा का पूरा उलट,
स्पष्ट दिखा आदमी का पक्षी से कपट,
देख तनी बिल्डिंग अब मन उदास था,
घना वृक्ष पीपल का मेरे घर के पास था,
तोते, मैना, चिड़ियों का वह निवास था ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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