नमस्कार मित्रों,
संजय अपने काम में व्यस्त था जब उसके पिता ने अचानक जोर से आवाज लगाई, “संजय!” वो तेजी से दौड़कर अपने पिताजी के पास पहुंचा, “क्या हुआ पापा?”
पिता की आवाज में हल्की सी गुस्सा था, “क्या तुम्हें याद नहीं है कि आज तुम्हारी बहन नंदिनी का जन्मदिन है? वो इस बार हमारे साथ ही अपना जन्मदिन मनाने आ रही है। तुम्हें अभी जाकर उसे स्टेशन से लेकर आना है।”
संजय ने थोड़ा असमंजस से कहा, “लेकिन पापा, मेरी गाड़ी तो आज सुबह ही मेरे दोस्त अर्जुन लेकर गया है। और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर लेकर सर्विस सेंटर गया है।”
पिता ने फिर आदेशात्मक स्वर में कहा, “तो कोई बात नहीं! तुम टैक्सी या कोई और साधन लेकर जा सकते हो। घर की बेटी स्टेशन से किसी टैक्सी या ऑटो में आएगी, ये मुझसे देखा नहीं जाएगा।”
संजय ने जवाब दिया, “पापा, नंदिनी बच्ची नहीं है, वो खुद टैक्सी या ऑटो से आराम से आ जाएगी। उसे क्या परेशानी होगी?”
यह सुनकर पिताजी की आंखों में हल्की सी नाराजगी झलक उठी, “तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए? घर में गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी को ऑटो से आना पड़े, ये तुम्हारे लिए ठीक है? नंदिनी ने तुम्हारा कितना ख्याल रखा है, और आज तुम ये सब कह रहे हो।”
संजय ने अपनी आँखें नीची करते हुए कहा, “पापा, वो अब शादीशुदा है। वो अब इस घर की नहीं रही। और इस घर पर मेरा हक़ है, बस।”
यह सुनते ही पिता का चेहरा लाल हो गया। वो अपने बेटे पर ऐसा व्यवहार देखकर हैरान थे। अचानक उन्होंने अपना हाथ उठाया और संजय को थप्पड़ मार दिया। संजय का चेहरा हैरानी और गुस्से से भर गया। तभी उसकी मां कमरे में आई और तुरंत बीच-बचाव करते हुए बोली, “आपको क्या हो गया है? इतने बड़े बेटे पर हाथ उठाते हो?”
पिता का चेहरा गुस्से और दर्द से भर गया था। उन्होंने काँपती आवाज़ में कहा, “तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा? अपनी बहन को पराया कहता है ये! वह बहन जिसने कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा, हर बार उसकी मदद की। जब वो छोटी थी, तो उसकी हर जरूरत का ख्याल रखती थी। शादी के बाद भी, जब उसने विदाई ली, तो सबसे ज्यादा इस भाई से गले लगकर रोई थी। और आज यही भाई उसे पराया कह रहा है।”
संजय कुछ नहीं बोल पाया। वह अपनी बहन नंदिनी से बेइंतहा प्यार करता था, लेकिन वह उसकी जिम्मेदारियों के बोझ के तले दबा हुआ था। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने पिताजी की बातों से उन्हें दुख पहुंचाया है। उसकी आंखों में पश्चाताप के आँसू आ गए।
संजय ने पापा के हाथ पकड़ते हुए कहा, “पापा, आप सही कह रहे हैं। मैं गलती कर रहा था। लेकिन क्या आप ये बता सकते हैं कि बुआ जो आपकी बहन है, वो जब-जब इस घर आई, आपने कभी उसे गाड़ी लेकर लाने की कोशिश क्यों नहीं की?”
पिता चौंक गए। “बुआ भी इसी घर से विदा हुई थी, वह भी इस परिवार का हिस्सा हैं। तो फिर उनकी और नंदिनी की अहमियत में क्या फर्क है? बुआ जब तंगी में होती थीं, तब भी आपने उन्हें ऑटो में आने दिया। आपने कभी सोचा कि उनकी भी यही अहमियत होनी चाहिए जो नंदिनी की है?”
पिता के चेहरे पर अचानक शर्मिंदगी और दुख की परछाई आ गई। वह खुद भी यह सोचने लगे कि क्यों उन्होंने अपनी बहन को वह इज्जत और अहमियत नहीं दी जो वह देती आ रही थीं। वह समझ गए कि उनका बेटा आज उन्हें एक कड़ा सबक सिखा गया है।
तभी बाहर गाड़ी की आवाज आई। नंदिनी घर पहुँच चुकी थी। वह दौड़ते हुए आई और पापा-मम्मी के गले लग गई। उसकी खुशी में कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब उसने पापा के आँखों में आँसू देखे, तो वह चिंतित हो गई, “क्या हुआ पापा?”
पिता ने मुस्कराते हुए कहा, “तुम्हारा भाई आज मुझसे भी बड़ा हो गया है। उसने मुझे सिखाया कि रिश्तों की अहमियत हर किसी के लिए बराबर होनी चाहिए।”
नंदिनी मुस्कराते हुए बोली, “अरे, आप सब ठीक हैं न? ये क्या बातें हो रही हैं? और हाँ, वो नई गाड़ी जो आपने कल खरीदी थी न, वह मुझे बहुत पसंद आई। इसलिए मैंने खुद ही ड्राइव करके आने का फैसला किया। रंग भी मेरे पसंद का है!”
संजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो गाड़ी तुम्हारी है दीदी, मेरे और पापा की तरफ से तुम्हें जन्मदिन का तोहफा!”
नंदिनी की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने संजय को गले लगाते हुए कहा, “तुम सच में बहुत प्यारे हो!”
तभी बुआ भी अंदर आईं। उनके चेहरे पर खुशी और गर्व झलक रहा था, “भैया, आपने गाड़ी क्यों भेजी? मुझे इतनी खुशी हुई जैसे पापा आज भी जिंदा हों!”
पिताजी अब अपने आँसू रोक नहीं पाए। उन्होंने संजय की तरफ देखा और उसे चुप रहने का इशारा किया। बुआ कहती जा रही थीं, “मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि मुझे आप जैसा भाई मिला। ईश्वर करे हर जन्म में मुझे आप जैसा भाई मिले।”
इस पूरे दृश्य को देखकर पिताजी और मम्मी की आँखें भर आईं। उन्होंने देखा कि संजय ने रिश्तों को समझने और निभाने में आज सबसे बड़ा कदम उठाया है। उन्हें अब इस बात का यकीन हो गया कि उनके बाद भी उनका बेटा रिश्तों की अहमियत को संभाले रखेगा।
नंदिनी और बुआ के रूप में ये दो अनमोल रिश्ते, जो एक परिवार की बुनियाद हैं, हमेशा बने रहेंगे। आखिरकार, एक बेटी और बहन की अहमियत कभी भी कम नहीं होती, चाहे वे कितनी भी दूर क्यों न हों।
बेटी और बहन के रिश्ते का महत्व अटूट होता है, जो हमें सिखाता है कि परिवार का हर सदस्य, चाहे वह बेटा हो, बेटी हो या बहन, बराबर की इज्जत और प्यार का हकदार होता है।
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.
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