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      || हिमखण्ड हिमालय के ||

      हिमखण्ड हिमालय के

      हिमखण्ड हिमालय के गलकर बनते रहते हैं पानी,
      गंगा,यमुना,और पंजाब की नदियाँ रहती उफनानी ।

      किन्तु विंध्याचल पर्वत के दक्षिण पष्चिम बने पठार,
      हुई कटाई अधाधुंध वन की,सबने की मनमानी ।

      हरेभरे जंगल सदियों से थे पर अब है निरा उजाड़,
      ना दस्तक अब मानसून की ना रिमझिम बरसे पानी ।

      विदर्भ क्षेत्र में होते थे केले के जो बहुमूल्य बागान,
      झाड़,झंकाड़ मात्र हैं और नदियाँ ठंड में भी बिन पानी ।

      झर-झर पर्वत से गिरकर जल बनते थे सुन्दर झरने,
      जड़ी-बूटियाँ पैदा होती थी ढलान पर वरदानी ।

      झरनों के वो दृश्य नहीं दिखते हैं अब ढूढें-ढूढें,
      जड़ी-बूटियाँ, पशु पक्षी पर अब प्रकृति ने भव तानी ।

      काट काट जंगल अब मानव खुद विनाश पर्याय बना,
      जन-जन को ये बात पड़ेगी अंतर्मन तक समझानी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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