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      || हूँ आपकी ही बेटी ||

      हूँ आपकी ही बेटी मुझे मारिये नहीं,
      चटा अफीम यूँ झूले में डारिये नहीं ।

      किसी ना किसी का वंश तो चलेगा मुझसे,
      बेटा कभी किसी का तो पलेगा मुझसे ।
      श्वेत वस्त्र दे धरा में यूं गाड़िये नहीं,
      हूँ आपकी ही बेटी मुझे मारिये नहीं ।


      आपकी भी माँ कभी बेटी रही होगी,
      पीर आपके लिये ना उसने सही होगी ।
      जन्म मैं भी दूँगी कभी,बिसारिये नहीं,
      हूँ आपकी ही बेटी मुझे मारिये नहीं ।


      कोई कोई बेटियों को फिरे तरसता,
      फिर भी मेह प्रार्थना पर नहीं बरसता ।
      कुदरत की रची पौध हूँ उजाड़िये नहीं,
      हूँ आपकी ही बेटी मुझे मारिये नहीं ।


      प्रार्थना से मेरी घर भैया भी आयेगा,
      पूण्य कन्यादान का घर भर कमायेगा ।
      अपने हाथों भाग्य खुद बिगाड़िये नहीं,
      हूँ आपकी ही बेटी मुझे मारिये नहीं ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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