हमको ना समझाओ अब
दफ्तर से आये विलंब हमको ना समझाओ अब,
खाना खा लो जल्दी- जल्दी बातें नहीं बनाओ अब ।
जन्मदिवस है मेरा हम बोले थे जल्दी आ जाना,
खायेंगे हम चाट चौपाटी में फिर मंदिर भी जाना ।
सेक्रेटरी की लच्छे वाली बातें नहीं सुनाओ अब,
दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।
साड़ी और ब्लाऊज लाना तो रही दूर की बात तुम्हें,
फूलों की वेणी को भी तो जागे ना जज्बात तुम्हें ।
दही बड़े तुमको भाते हैं वही बनाये खाओ अब,
दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।
घर की मुर्गी दल बराबर यही सोचते शायद तुम,
समझा दूँगा मैं घर जाकर यही सोचते शायद तुम ।
एक नहीं हम सुनने वाले चाहे लाख मनाओ अब,
दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।
चौपाटी या मंदिर हमको कहीं नहीं जाना है अब,
जल्दी से फुसला लेते हो अपना मतलब होता जब ।
नहीं हँसी अब आने वाली लाख हमें गुदगुदाओ अब,
दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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