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माँ में तेरी सोनचिरैया | WRITTEN BY MRS PRABHA PANDEY 2YODOINDIA POETRY

|| हमको ना समझाओ अब | HUMKO NA SAMJHAO AB ||

हमको ना समझाओ अब

दफ्तर से आये विलंब हमको ना समझाओ अब,

खाना खा लो जल्दी- जल्दी बातें नहीं बनाओ अब ।

जन्मदिवस है मेरा हम बोले थे जल्दी आ जाना,

खायेंगे हम चाट चौपाटी में फिर मंदिर भी जाना ।

सेक्रेटरी की लच्छे वाली बातें नहीं सुनाओ अब,

दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।

साड़ी और ब्लाऊज लाना तो रही दूर की बात तुम्हें,

फूलों की वेणी को भी तो जागे ना जज्बात तुम्हें ।

दही बड़े तुमको भाते हैं वही बनाये खाओ अब,

दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।

घर की मुर्गी दल बराबर यही सोचते शायद तुम,

समझा दूँगा मैं घर जाकर यही सोचते शायद तुम ।

एक नहीं हम सुनने वाले चाहे लाख मनाओ अब,

दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।

चौपाटी या मंदिर हमको कहीं नहीं जाना है अब,

जल्दी से फुसला लेते हो अपना मतलब होता जब ।

नहीं हँसी अब आने वाली लाख हमें गुदगुदाओ अब,

दफ्तर से आये विलंब से हमको ना समझाओ अब ।

लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “

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