जब पॉलिथीन बैग नहीं थे
जब पॉलिथीन बैग नहीं थे,तब क्या खरीददार नहीं थे?
गेहूँ, चावल, दालें फल और सब्जी के बाजार नहीं थे?
साफ स्वच्छ कपड़े के थैले में सामान लिया करते थे,
धोकर थैला फिर उपयोग दुबारा उसे किया करते थे,
करने का उपयोग उस समय अप्राकृतिक आधार नहीं थे,
जब पॉलिथीन के बैग नहीं थे तब क्या खरीददार नहीं थे?
उड़कर नाली में जाते तो नाली को अवरुद्ध कर देते,
कचरे में मिलते तो निश्चित वातावरण अशुद्ध कर देते,
ऐसा नहीं कि पहले होते धंधे व्यापार नहीं थे,
जब पॉलीथिन बैग नहीं थे,तब क्या खरीददार नहीं थे?
बेमुख गायें, भैंस पॉलिथीन खाकर कहाँ मरा करते थे,
रखने स्वच्छ उद्यान,बगीचे रोड़े कहाँ अड़ा करते थे,
आज के जैसे रासायन विष भी होते तैयार नहीं थे,
जब पॉलिथीन बैग नहीं थे तब क्या खरीददार नहीं थे?
सालों साल धरा में पानी जाना इससे रुक जाता है,
पॉलिथीन विनाश के आगे ऊँचा अम्बर झुक जाता था,
ऐसे हम सब पॉलिथीन से बेबस और लाचार नहीं थे,
जब पॉलिथीन बैग नहीं थे तब क्या खरीददार नहीं थे?
बचना है प्रकृति प्रकोप से पॉलिथीन उपयोग छोड़ दो,
इसके बिना काम ना होंगे झूठा भृम है इसे तोड़ दो,
कष्ट बीमारी के अब हैं जो पहले वो भंडार नहीं थे,
जब पॉलिथीन बैग नहीं थे तब क्या खरीददार नहीं थे?
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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