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      || कभी कभी जो करना चाहो | KABHI KABHI JO KARNA CHAHO ||

      कभी कभी जो करना चाहो

      कभी कभी यदि करना चाहे काम तो करने दीजिये,
      अपनी बहू को इच्छा के अनुकूल विचरने दीजिये,

      कभी कभी उसे भी लगता वह भी खीर बना लेगी,
      हलवा पूड़ी दही पापड़ आदि से थाल लगा लेगी,
      पिसी इलाइची और मेवों से हर पकवान सजा लेगी,
      वाह वाह क्या खाना है घर में सबसे कहला लेगी,

      मीठा कम या अधिक जरा सा हो तो पड़ने दीजिये,
      कभी कभी यदि करना चाहे काम तो करने दीजिये,

      यदि किसी कारणवश नमक डालना भी जाती है भूल,
      नहीं चाहिए ऐसी भूलों को देना,सासों को तूल,
      कभी कभी छोटी बातें भी बन जाती चिंगारी शूल,
      पल में राख बना देती जो घर बगिया के महके फूल,

      सम्बन्धों में भरसक कोई कील न गड़ने दीजिये,
      कभी कभी यदि करना चाहे काम तो करने दीजिये,

      छोटी उम्र बहु की समझ भी छोटी मानी जायेगी,
      दोनों की तू-तू मैं-मैं क्या बेटा बीच ना लायेगी,
      बालू की ना बने भीत पर मन की तो बन जायेगी,
      बाहर से भी बढ़कर आँखें भीतर नीर बहाएंगी,

      माली बन उस समय घर की बगिया न उजड़ने दीजिये,
      कभी कभी यदि करना चाहे काम तो करने दीजिये ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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