कहता नहीं है माँ
पैदा होकर जब तक बच्चा कहता नहीं है माँ,
तब तक माँ ही होती है बस बच्चे की जुबाँ ।
पाते ही माँ का आभास,खिलखिला उठता,
और दुखी हो रोने लगता देख के दूरियाँ ।
इस समय बच्चा ही माँ की होती जिन्दगी,
बच्चा ही माँ का सूर्य और बच्चा ही चन्द्रमा ।
बच्चा ही माँ की साँस और बच्चा ही धड़कनें,
आँखों का केन्द्र बच्चा ही,हो खुद भले जहाँ ।
बोलना करता है शुरू बच्चा जब कभी,
तोतली भाषा में सबसे पहले कहता माँ ।
सीने से लगा माँ के,बच्चा पी रहा हो दूध,
आशीश और आनन्द मिल फैलती धमनियाँ ।
माँ और बच्चे बीच कभी देख ले भगवन,
करेगा कोशिश कभी ना आये वो दरमियाँ ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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