बहू तेरी किसी की तो बेटी है वो,
फिर भला आग में क्यों लपेटी है वो ।
माता-पिता,बहन-भाई छोड़ आई है,
सारे मैके के रिश्ते वो तोड़ आई है,
बहू, भाभी के उपनाम जोड़ आई है,
स्नेह सरिता दिशा को वो मोड़ आई है ।
तेरे घर की है अस्मत समेटी है वो,
फिर भला आग में क्यों लपेटी है वो ।
डोर दिल से अगर वो जो खींचे नहीं,
खून से अपने यदि बाग सींचे नहीं,
सेहरा तो बन सके है बगीचे नहीं,
रूप यौवन में भी तुमसे नीचे नहीं,
कौन सी बात में तुमसे हेटी है वो,
फिर भला आग में क्यों लपेटी है वो ।
गर जो अच्छा हुआ नाम उसका नहीं,
हो गया कुछ बुरा फिर तो है बस वही,
खोट हर बात में,जो भी उसने कही,
वो किसी भी नजर से दिखे ना सही,
बिना सोचे ही जुल्मों को भेंटी है वो,
फिर भला आग में क्यों लपेटी है वो ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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