नमस्कार मित्रों,
एक मोहल्ले में एक गुंडा था जिसका भौकाल बहुत टाईट हुआ करता था।
मोहल्ले के सारे लोगों की नाक में दम कर रखा था गुंडे ने पर उसका रुवाब कुछ ऐसा था कि सब चुपचाप उससे बच के निकलने में ही भलाई समझते थे,
कोई उसे कुछ बोल नहीं पाता था।
दारू पी के मोहल्ले की औरतों को छेड़ना, लोगों से हफ्ता वसूली करना, कभी भी किसी को भी गरिया देना, फालतू में पीट देना, लोगों की ज़मीन कब्जा लेना, ये सब उसके लिए आम बात थी।
गुंडा तो गुंडा बल्कि उस गुंडे के दो चार मरियल चेले चपाटे भी गुंडे के टेरर के दम पर मोहल्ले वालों पर हाथ साफ कर लेते थे।
फिर मोहल्ले के कुछ शरीफों ने प्लान बनाया कि बहुत हो गया अब इससे बात की जाए कि हफ्ता देने के बावजूद ये लोगों को परेशान क्यों करता है।
तो 5-6 शरीफ इकट्ठे होकर पहुंच गए गुंडे के सामने,
उनमें से एक जो सबसे समझदार आदमी था उसे बात करने के लिए आगे कर दिया।
गुंडा भी समझ गया कि ये लोग क्यों आए हैं इसलिए आदत से मजबुर होकर लगा तबीयत से सबको बहिन महतारी वाली गालियां गरियाने।
फिर अचानक गुंडे ने उस समझदार आदमी को धक्का दे कर गिरा दिया।
पता नहीं कैसे उस समझदार आदमी के सब्र का बांध टूटा,
उसकी बुद्धि पर अचानक गुस्सा हावी हुआ और उसने तुरंत खड़े होकर जोर का एक रेहपट उस गुंडे को लगा दिया।
गुंडे को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि ये शरीफ सा दिखने वाला आदमी अचानक पेल देगा।
गुंडा पहले लड़खड़ाया फिर स्तब्ध देखने लगा।
साथ गए 4 शरीफ भी हैरान देखते रह गए।
फिर तो भाईसाब पता नहीं क्या हुआ कि चारों शरीफों ने गुंडे को दे मुक्का, दे लात, इधर से रेहपट, उधर से बुट, बस रूई सा धुन दिया।
एक आदमी के गुस्से ने बाकियों की झिझक ख़तम कर दी थी।
चौराहे पर हुए इस काण्ड को देखकर तो फिर कटते कद्दू में सबने अपना हिस्सा बांट लिया,
जो आस पास थे सबने आकर हाथ साफ कर लिए।
गुंडे के चेले मौका देखकर सबसे पहले वहां से चंपत हुए।
कुल मिलाकर इत्ते बड़े टाईट भौकाल का नाड़ा एक आदमी के गुस्से ने ढीला कर दिया।
इस प्रकार गुंडे की दहशत और गुंडागर्दी ख़तम हुई।
मैं ये कतई नहीं कह रहा कि ये मोहल्ला विश्व बिरादरी थी,
गुंडा चीन था और जिस शरीफ आदमी ने पहला झापड़ मारा वो भारत था।
मैं ये भी नहीं कह रहा कि कि शरीफ आदमी ने पहला झापड़ “गलवान घाटी” में मारा था।
मेरा ये मतलब भी नहीं है कि 59 चीनी ऐप ban करके भारत ने कई देशों की झिझक ख़तम कर दी है और अब कई देश चीनी ऐप और सामान को अपने यहां ban करेंगे।
अगर आपको ये लग रहा है कि मरियल चेले चपाटे पाकिस्तान और उत्तर कोरिया हैं तो ये भी मेरा मतलब नहीं था।
ये तो विशुद्ध काल्पनिक कथा है जो मैंने मज़ा लेने के लिए आपको सुनाई,
इसका फिल्मी डिस्क्लेमर की तरह किसी देश से कोई संबंध नहीं है।
हां ये ज़रूर कह रहा हूं कि एक मुहावरा है-
लातों के भूत बातों से नहीं मानते
और एक शेर है-
फलाना है ढिमका है रोता है क्या,
आगे आगे देखिए होता है क्या!।
तो देखते रहिए मोहल्ले के शरीफों का सब्र का बांध अब टूट चुका है,
पिक्चर का तो अभी इंटरवल हुआ है बस, कम्बल कुटाई का सीन तो आना बाकी है अभी ।
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.
लेखक
राहुल राम द्विवेदी
” RRD “