लक्ष्मी और दुर्गा
एक थी लक्ष्मी बाई झाँसी की रानी,
दूजी थी दुर्गावती,दुर्गा की सानी ।
दोनों की आदत में बचपन से मेल,
घुड़सवारी,शिकार खतरों का खेल ।
पूर्व जन्म की दोनों जैसे थीं बहनें,
तलवार,कटारी जिन्हें प्रिय थे गहने ।
दोनों पर आया था असमय वैधव्य,
उठाना पड़ा राज्य का उत्तरदायित्व ।
दोनों थीं स्वाभिमानी बहादुर,
स्वतंत्रता दीवानी,राजनीति में चतुर ।
दोनों दूरदर्शी न्यायप्रिय महान,
खुशी में प्रजा की थी दोनों की जान ।
एक ने किया था गोरों से युद्ध,
दूजी लड़ी थी,मुगलों विरुद्ध ।
विस्तारवाद के दोनों खिलाफ,
करती नहीं थी पर दुश्मन को माफ ।
दोनों लड़ी जंग बन के मर्दानी,
दोनों ने किये, दुश्मन पानी-पानी ।
नहीं दिखता हमको दोनों में अंतर,
बहादुर थीं दोनों सदा,निरंतर ।
लक्ष्मी का था लाल शक्ति का रंग,
झंडा केसरिया था दुर्गा के संग ।
दोनों ने खाया था अपनों से धोका,
लड़कर मरी थीं भले सबने रोका ।
बदनसिंग न रस्ता गढ़ा का दिखाता,
आसफरवाँ मारकर ही दिल्ली सिधाता ।
अड़ा घोड़ा लक्ष्मी का था बड़ा नाला,
गज घायल दुर्गा का भी नर्रई नाला ।
कटे सिर मगर ना था सिर झुकाया,
इतिहास दोनों ने पुख्ता रचाया ।
पड़े तीर तलवार दोनों के सिर पर,
कहा दोनों ने था महादेव हर हर ।
कुछ तो सबक लें देशद्रोही नेता,
इसी मिट्टी में खूँ है उन देवीयों का ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “