माँ का हृदय
जब से बनी है सृष्टि ये,तब से है ये हाल,
माँ का हृदय ही रहा है जग में सदा विशाल ।
जब आये कोख में शिशु, कभी रहे ना रिक्त,
खान-पान संग आक्सीजन में रहता है तृप्त ।
पहुँचे कण-कण किस तरह प्रभु जाने किस हाल,
माँ का हृदय ही रहा है जग में सदा विशाल ।
ममता के मधु घोल में,घुलमिल हो संचार,
लाल रक्त से हो रहा श्वेत दुग्ध तैयार ।
जैसे ही ले जन्म शिशु मिले दुग्ध तत्काल,
माँ का हृदय ही रहा है जग में सदा विशाल ।
शिशु के क्रियाकलाप से कभी न होती रुष्ट,
गीले में सोये सदा कभी न माने कष्ट ।
माँ के त्याग की धुरी से,शिशु हो मालामाल,
माँ का हृदय ही रहा है जग में सदा विशाल ।
माँ के सम्मुख लघु है क्या राजा सावंत,
सहन शक्ति की बात हो,हार जाये भगवंत ।
श्यामा गौ तक शिशुहित बने सिंहनी विकराल,
माँ का हृदय ही रहा है जग में सदा विशाल ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
ALSO READ OTHER POETRY माँ में तेरी सोनचिरैया