|| माँ का प्यारा लाल | MAA KA PYARA LAL ||
माँ का प्यारा लाल
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल,
कोठे की लत ने किया उसे बहुत बेहाल ।
रमणी को इस बात का थोड़ा कुछ था भान,
करता है ये नवयुवक अपनी माँ का मान ।
विदुषी बुद्धिमति थी और था थोड़ा ज्ञान,
यहाँ न आने चाहिये माँ के पुत्र महान ।।
सोचा मन में था यही किसी तरह दूँ टाल,
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल ।
मैंने सुना है जगत में होते मीठे फल,
किन्तु फल से भी अधिक मीठा माँ का दिल ।
लाकर दोगे यदि मुझे तभी सकोगे मिल,
प्रेम मेरा है अन्यथा मिलना भी मुश्किल ।।
ज्यों ही लाओ हृदय तुम करूँ प्रणय तत्काल,
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल ।
सीधा अपने घर गया और पकड़ी कटार,
माँ के सीने पे किया सीधा वार पे वार ।
रखा कलेजा जतन से बही खून की धार,
दौड़ पड़ा अविलंब ही वापिस रमणी द्वार ।
इससे बढ़कर और क्या रमणी करे सवाल,
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल ।
दौड़ता जाता राह में लगी ज्यों ही ठोकर,
‘लगी तो नहीं’ कह उठा हृदय माँ का रो कर ।
‘नहीं लगी’ बोला वहाँ पर अधीर होकर,
उसके पहले पहुँच लूँ, उठे प्रिया सोकर ।।
‘ले लो माँ का हृदय है लाया अभी निकाल’,
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल ।
जग में जितनी गालियाँ उतनी तुमको कम,
नीच,अधर्मी,दुष्ट तुम पापी हो अधम ।
जिसने था पैदा किया उसके हुए ना तुम,
मेरे होकर रहोगे नहीं मानते हम ।।
धक्का देकर फिर उसे घर से दिया निकाल,
हृष्ट पुष्ट सा नवयुवक माँ का प्यारा लाल ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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