|| माँ रामायण है गीता है ||
माँ रामायण है गीता है
माँ रामायण है गीता है,
माँ सीता परम पुनीता है ।
काशी काबा माँ के चरण,
हर दुख का जो कर ले हरण।
माँ का कोई मूल्य नहीं है,
माँ से कुछ भी तुल्य नहीं है ।
माँ की आज्ञा राम ने मानी,
झट से जंगल जाने ठानी ।
माँ से भूत-पिशाच डरे है,
लपट आग की आँच टरे है ।
जल थल को जो बांधे पल में,
बंधे रहे माँ के मूसल में ।
सृष्टि से पहले माँ जग में,
दौलत जग की माँ के पग में ।
माँ से कोई और न दूजा,
सेवा माँ की सच्ची पूजा ।
बच्चों पर यदि संकट आता,
फिर तो माँ को कुछ ना भाता ।
ठंडी मीठी बहे बयार,
जब बच्चे को करे दुलार ।
बीज को माँ देती आधार,
बच्चे को देती आकार ।
साधु,संत भले बैरागी,
माँ सा कोई मिला न त्यागी ।
माँ करती जो हित संतान,
कर ना पावे वो भगवान ।
प्रीत करे बच्चों से गहरी,
बच्चों का माँ सा ना प्रहरी ।
माँ ममता का गहरा सागर,
हर क्षण छलकत रहती गागर ।
माँ ममता की निश्छल धार,
जिसका कोई आर ना पार ।
ममता का ऐसा आनन्द,
वारे जायें खुद भगवंत ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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