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माँ में तेरी सोनचिरैया | WRITTEN BY MRS PRABHA PANDEY 2YODOINDIA POETRY

|| माँ रामायण है गीता है ||

माँ रामायण है गीता है

माँ रामायण है गीता है,
माँ सीता परम पुनीता है ।

काशी काबा माँ के चरण,
हर दुख का जो कर ले हरण।

माँ का कोई मूल्य नहीं है,
माँ से कुछ भी तुल्य नहीं है ।

माँ की आज्ञा राम ने मानी,
झट से जंगल जाने ठानी ।

माँ से भूत-पिशाच डरे है,
लपट आग की आँच टरे है ।

जल थल को जो बांधे पल में,
बंधे रहे माँ के मूसल में ।

सृष्टि से पहले माँ जग में,
दौलत जग की माँ के पग में ।

माँ से कोई और न दूजा,
सेवा माँ की सच्ची पूजा ।

बच्चों पर यदि संकट आता,
फिर तो माँ को कुछ ना भाता ।

ठंडी मीठी बहे बयार,
जब बच्चे को करे दुलार ।

बीज को माँ देती आधार,
बच्चे को देती आकार ।

साधु,संत भले बैरागी,
माँ सा कोई मिला न त्यागी ।

माँ करती जो हित संतान,
कर ना पावे वो भगवान ।

प्रीत करे बच्चों से गहरी,
बच्चों का माँ सा ना प्रहरी ।

माँ ममता का गहरा सागर,
हर क्षण छलकत रहती गागर ।

माँ ममता की निश्छल धार,
जिसका कोई आर ना पार ।

ममता का ऐसा आनन्द,
वारे जायें खुद भगवंत ।

लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “

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