माँ याद तुम्हारी आती है
एक वर्ष फिर बीत गया माँ याद तुम्हारी आती है,
आँख से सावन भादों की झड़ियों जैसी बरसाती है ।
जब से चली गई हो माँ तुम भटक रहा ममता को दिल,
जहाँ मिला बस स्वार्थ मिला मरना आसाँ जीना मुश्किल ।
कभी-कभी बस सपने में आकर मुझको दुलराती है,
एक वर्ष फिर बीत गया माँ याद तुम्हारी आती है ।
तेरी ममता की लोरी को भूल नहीं पाते हैं हम,
कोशिश बहुत भुलाने की की, बढ़ता जाता उतना गम ।
रोते ही रह जाते हैं हम थपकी ना मिल पाती है,
एक वर्ष फिर बीत गया माँ याद तुम्हारी आती है ।
तुम क्या जग से चली गईं माँ ममता का संसार गया,
चलते-चलते जैसे हमको सर्प दंश सा मार गया ।
तुम जो नहीं रही ये दुनिया सितम सभी आजमाती है,
एक वर्ष फिर बीत गया माँ याद तुम्हारी आती है ।
तुम थी तो दुनिया के झटके हमको ना छू पाते थे,
छोटी-छोटी बातों पर हम आँसू नहीं बहाते थे ।
आशीषों की मुरझाई कलियाँ अब न मुसकाती है,
एक वर्ष फिर गया माँ याद तुम्हारी आती है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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bahut hi khoob varnan hai mata ke sneh ka is drishtant me ………