माँग कर दहेज खुद को छोटा कर लेते हैं लोग,
अपने खरे सिक्के को भी खोटा कर लेते हैं लोग ।
माँगना ही चाहते तो माँगिये भगवान से,
खर्च करने में मिले आनन्द करो शान से ।
अपने स्वाभिमान में भी टोटा कर लेते हैं लोग,
माँग कर दहेज खुद को छोटा कर लेते हैं लोग ।
दिल दुखाकर आपने लिया तो क्या लिया,
इस तरह चादर बड़ा किया अगर तो क्या किया ।
अपनी सुराही ही खुद ही लौटा कर लेते हैं लोग,
माँग कर दहेज खुद को छोटा कर लेते हैं लोग ।
बाजुओं में दम है तो क्या हम कमा सकते नहीं,
पाँव अपनी चादर में क्या हम समा सकते नहीं ।
क्यों नहीं सीमाओं से समझौता कर लेते हैं लोग,
माँग कर दहेज खुद को छोटा कर लेते हैं लोग ।
माँगने की पड़ जाती आदत है बात बात में,
हो जाते बदनाम मुहल्ले,पड़ोस,जात में ।
लाख सब हँसे पर चमड़ा मोटा कर लेते हैं लोग,
माँग कर दहेज खुद को छोटा कर लेते हैं लोग ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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