माता-पिता का ध्यान
इंसाँ जो रखते नहीं मात-पिता का ध्यान,
हो सकते हैं वो जानवर पर नहीं हैं इन्सान ।
स्वयं तो देते हैं दोस्तों को नित दावत,
माँ-बाप पड़े अलग भला क्यों उनसे अदावत ।
उनकी जरूरतों से बने रहते हैं अनजान,
हो सकते हैं वो जानवर पर नहीं इन्सान ।
बीवी को लगा ठसका आये पल में डॉक्टर,
मा-बाप के दमे की भी रखते नहीं खबर ।
तिस पर भी रखें तुर्रा और दिखायें झूठी शाम,
हो सकते हैं वो जानवर पर नहीं हैं इन्सान ।
दो बोल उनसे बोलने का वक्त नहीं है,
जैसे कि वे स्वयं भी उनका रक्त नहीं हैं ।
इतना जुल्म किस हृदय से सह रहा भगवान,
हो सकते हैं वो जानवर पर नहीं हैं इन्सान ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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