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      || मच्छरराम ||

      मच्छरराम

      गावों में मिलते हैं कम,शहरों में ढेरों मच्छरराम,
      यदि करना है तो जाकर करिये शहरों में इन्हें प्रणाम ।

      स्वागत फिर ये करें आपका कभी भूल ना पायेंगे,
      भिन भिन की सरगम के संग मीठा संगीत सुनायेंगे,
      उस मीठे संगीत के सम्मुख नींद बेचारी का क्या काम,
      गावों में मिलते हैं कम,शहरों में ढेरों मच्छरराम ।

      इतना करेंगे स्नेह आपसे जरा नहीं सोने देंगे,
      भूले से झपकी आई छोटा सा इंजेक्शन देंगे,
      उनके अपनेपन के आगे बिक जाते हैं सब बिन दाम,
      गावों में मिलते हैं कम,शहरों में ढेरों मच्छरराम ।

      जहां-जहां भी जाओगे संग आपके जायेंगे,
      कभी बोलकर,कभी काटकर अपनी प्रीत जतायेंगे,
      ऐसा काम का पाठ पढ़ायें ना करने देंगे आराम,
      गावों में मिलते हैं कम,शहरों में ढेरों मच्छरराम ।

      स्नेह भावना उनकी अनुपम झड़ी लगा दें चुम्बन की,
      मुक्त नहीं हो सकते ऐसी प्रेम पिपासा बंधन की,
      मादा देती मलेरिया की प्रेम निशानी,मच्छरराम,
      गावों में मिलते हैं कम,शहरों में ढेरों मच्छरराम ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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