More
    27.1 C
    Delhi
    Monday, October 2, 2023
    More

      || मैका मेरा भरा पूरा था | MAIKA MERA BHARA PURA ||

      मैका मेरा भरा पूरा था

      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला,
      दुनिया कहती जोड़ी ऐसी जैसे सुर और ताल मिला ।

      ब्याह के आई ससुर जी मेरे थे सोने के व्यापारी,
      अंदर बाहर थी सुख सुविधा नोट भरी थी अलमारी,
      पूजा,ध्यान, भजन,अर्चना होता था बारी-बारी,
      सासू मेरा ध्यान रखें थीं ज्यों हूँ मैं कोई सुकुमारी ।

      अपनी किस्मत से मैं खुश थी जो माँगा तत्काल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      सासूजी की एक लालसा पोतों का मुँह देखें कब,
      आठ साल में बेटे पाँच दिये थे मैंने उनको तब,
      ऊपर वाले की मर्जी थी बेटे ही बेटे थे सब,
      बेटी एक नहीं थी घर में यही कमी थी शायद तब ।

      धन्य भाग कह मैंने माना समय मुझे खुशहाल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      चक्र समय का कब रुकता है एक-एक कर बड़े हुए,
      ब्याह हुआ बहुऐं आई ससुराल सभी के चढ़े हुए,
      कुछ दिन बाद लगे था ऐसा भाई हों ज्यों लड़े हुए,
      देख भाई को भाई लगता जैसे फल हों सड़े हुए ।

      जुदा हुए पाँचो और बाँटा जो भी घर में माल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      झटका सहन न कर पाये, गये सास-ससुर सीधे ऊपर,
      हार्ट अटैक ने मेरे पति का भी किया जीवन दूभर,
      कुछ दिन बाद सिधार गये जैसे वो थे खुद भी तत्पर
      मुझको मौत नहीं आई फोड़ा पत्थर से भी सर ।

      उम्र रही होगी पैसठ की समय था अब बेहाल मिला
      मैका मेरा भरा- पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।
      माल असबाब तो बेटों ने था पहले ही से बाँट लिया,

      ALSO READ  || मासूम सा था चेहरा | MASOOM SA THA CHEHRA ||

      मैंने कुछ कहना चाहा, तो बहुओं ने था डाँट दिया,
      एक एक वर्ष रहूँगी घर में मैं ये सांठ लिया,
      बेटों ने भी वही कहा बहुओं ने जो था गाँठ दिया ।

      खाना और पहनना मुझको बदल-बदल हर साल मिला
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      बीते ऐसे बीस बरस अब वृद्धावस्था घिर आई,
      याद नहीं रहता कुछ अब तो मति ही जैसे फिर आई,
      चलना दूभर हुआ लगे जब तब धरती पर गिर आई,
      बीते बरस जहाँ जाऊँ सब समझें आफत घिर आई ।

      आने वाला समय मुझे था और अधिक वाचाल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      धीरे-धीरे वर्ष की पारी पंद्रह दिन पर आ पहुँची,
      अब तो जैसे जान मेरी कुछ और हलक तक आ पहुँची,
      जैसे ही कुछ नींद बुढ़ापे की आदत तक आ पहुँची,
      वैसे तो दूजे बेटे के घर की पारी आ पहुँची ।

      आँखों से दिखता भी कम भटकन जैसा जंजाल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      हाल हुआ अब ये मेरा,खाना तक मेरा भार हुआ,
      भूल गये तो भूल गये खाना देना,ये सार हुआ,
      पूछे ना बतियाये कोई जीवन अब नि:सार हुआ,
      नर्क से कुछ अधिक ही बढ़कर अब मेरा संसार हुआ ।

      दिल से पूछूँ या दुनियां से कैसा विकट सवाल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      आज यही लगता है मुझको जीवन है बेकार मेरा,
      शायद मेरे कुऐं का जल ही सह पायेगा भार मेरा,
      हे ईश्वर यदि राई रत्ती मुझ पर है अधिकार मेरा,
      नि:संतान भला था जीवन आज यही है सार मेरा ।

      ALSO READ  || सबकी जानी मानी थी ||

      यही सोच मैं कूद पड़ी हूँ, किसी हाल तो काल मिला,
      मैका मेरा भरा-पूरा था वैसा ही ससुराल मिला ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

      FOR MORE POETRY BY PRABHA JI VISIT माँ में तेरी सोनचिरैया

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,481FansLike
      76FollowersFollow
      652SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles