नमस्कार मित्रों,
राही जी व राहुलराम द्विवेदी के साथ मैं गाँव पहुँचा। मुण्डमालेश्वर महादेव मन्दिर पर विराट कवि-सम्मेलन कराए जाने हेतु चर्चा चल रही थी। रम्पू काका व पण्डित सूर्यप्रकाश मिश्र भी मौजूद थे। हम लोगों के पहुँचने पर सभी ने प्रसन्नता जाहिर की।
फुनार के लड़के देवप्रकाश ने कहा- ‘नेशनल फेम के बड़े कवि व कवयित्रियों को बुलाया जाए।’ दो-चार-छः नाम भी उसने कवि-कवयित्रियों के एक साँस में गिना भी दिए; जिन्हें सुनकर पण्डित सूर्यप्रकाश की भौंहे तन गईं और वे बोल पड़े- ‘तुम लोग बड़ा कवि किसे मानते हो? क्या वह बड़ा कवि है, जो आज मार्केटिंग के दौर में सोशल मीडिया में खूब वायरल हो गया है? या जिसने स्वयं को बड़ा या युग कवि घोषित कर लिया है? या फिर जिसे तुम जैसे अविज्ञ लोगों ने बड़ा मान लिया है? मैंने तो कवि-सम्मेलन के मंच पर जहाँ सरस्वती जी की प्रतिमा विराजमान होती है, कवि-कवयित्रियों के बीच अश्लील द्विभाषी सम्भाषण होते देखा है। जिन कवियों के नाम तुमने लिए हैं, इनमें से भारतीय परिषद के कवि-सम्मेलन के मंच पर एक की अश्लील टिप्पणी पर उसे मैंने व फिर मेरे साथ जमीन पर बैठे और कई लोगों ने नीचे से ही डाँट दिया था। फिर वह प्रतिभासंपन्न कवि गम्भीर हो गया था।’
भोलानाथ के लड़के दुर्गेश ने कहा- ‘आजकल श्रृंगार में कवयित्री कामिनी कौशल, हास्य में कवि चिरकुट दुर्गापुरी व भोले झोलाछाप तथा ओज में कवि वीरेश अग्निबाण का नाम खूब वायरल है। आप इन्हें फेसबुक, एक्स व यूट्यूब पर देख सकते हैं।
इस पर गाँव के नवोदित कवि रामेन्द्र दत्त ‘रत्न’ ने कहा- ‘पता है, ये कवि वही दो-तीन कविताएँ लेकर पूरी दुनियां में भ्रमण कर रहे हैं और कविता से ज्यादा अपने काव्यपाठ के बीच में गद्य-वाचन करते हैं। दो पंक्तियाँ कविता की पढ़ते हैं, तो दो पेज गद्य बाँचते हैं। और चिरकुट, चिरकुट तो वही चुटकुले चालीस जगह सुनाते हैं, जिन्हें चालीस कवि कॉपी-पेस्ट करते हैं। पता नहीं ये चुटकुले कहाँ से उत्पन्न हुए। तुम्हें इन लोगों को बुलाना है तो बुलाओ, पर इसे कवि-सम्मेलन का नाम न देकर कोई और नाम दो… ‘भड़ैती-सम्मेलन… आदि-आदि…’
रम्पू काका बोले- बच्चा, हमने रमई काका को सुना है, फिर काका हाथरसी व काका बैसवारी को भी सुना है। ये लोग चुटकुले नहीं सुनाते थे। हमने बच्चा, ब्रजेन्द्र अवस्थी को भी सुना है और सत्ता व व्यवस्था के विरुद्ध सच बोलने का उनका साहस भी देखा है। ये लोग किसी परधान मंत्री का सीना नापकर यह नहीं बताते थे कि वह कितने इंच का है। बच्चा, पहले मंचीय व पुस्तकीय कवि या कविता में भेद नहीं होता था। जो मंच पर बोला जाता था, उसे पुस्तकों में लिखा भी जा सकता था और समझने की बात है बच्चा, जिसे लिखा नहीं जा सकता, उसे बोला कैसे जा सकता है?
राही जी से नहीं रहा गया और वह बोल पड़े- अरे काका, दीक्षित जी अक्सर कहा करते हैं कि कवि यदि वस्तुतः कवि है, तो वह छोटा या बड़ा नहीं होता… शालिग्राम की बटिया छोटी या बड़ी, शालिग्राम ही है, उसकी महत्ता सम है। दूसरे हमारे विधु जी बहुत अधिक मंचों पर नहीं जाते हैं और शायद ना ही बुलाये जाते हैं और ना ही सोशल मीडिया पर अधिक वायरल हैं, पर वह किस कवि से कमतर हैं? दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं और कई दर्जनों का कुशल सम्पादन किया है। कविता मात्र मनोरंजन की वस्तु नहीं है। यदि कविता उदात्त नहीं है, तो वह कविता नहीं है। कवि-कर्म कोई साधारण कर्म नहीं है, कवि को कविधर्मा होना चाहिए। दीक्षित जी (आशु जी) ने कहीं पर लिखा है-
“कविता का सर्जक छोटा या बड़ा कवि नहीं होता है।
कवि एक युग का नहीं, युग-युग का कवि होता है।
लेखनी लघु या गुरु नहीं, सिर्फ लेखनी होती है।
लिखी जाए सदभाव से तो, कविता सिर्फ कविता होती है।”
रम्पू काका (राहुलराम द्विवेदी की ओर मुखातिब होते हुए): राहुल बच्चा, तुम पत्रकार हो, विधु जी जैसे साहित्यिक संतों को सोशल मीडिया पर वायरल करो, इनकी कविताओं को प्रसारित करो।
और फिर मेरी ओर मुखातिब होते हुए रम्पू काका ने कहा: बच्चा, तुम ऐसे कवियों की सूची बनाओ, जो सिर्फ कविता पढ़ते हों। कविता के नाम पर चुटकुलेबाजी व भड़ैती न करते हों। फिर अपने गाँव में कवि-सम्मेलन कराया जाए।
मैं सूची बना रहा हूँ… हो सके तो आप भी सूची बनाने में मदद करें!
लेखक
श्री विनय शंकर दीक्षित
“आशु”
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