मत दीजिये हमारी बेटी को यातनायें
बेटी के लिये होती हैं समान भावनायें ।
छोटे बड़े सभी की सेवा टहल करेगी,
चूल्हा और चौका झाड़ू पोंछा वही करेगी ।
कुइयां है दूर फिर भी खुशी से जल भरेगी,
जितने भी काम घर के करने से ना डरेगी ।
मैं दे न सका धन तो उसको न दें सजायें,
मत दीजिये हमारी बेटी को यातनायें ।
पढ़ने में मेरी बेटी काफी थी होशियार,
सीने पिरोने को भी ना समझे थी बेगार ।
पेंटिंग करे थी,देती थी हूबहू उतार,
समझे हैं आप जितनी ,उतनी न थी गंवार ।
मिट्टी में मिल गई हैं सब उसकी योग्यतायें
मत दीजिये हमारी बेटी को यातनायें ।
गोरी न सही फिर भी गेहुंआ लिये थी रंगत,
सोने पे सुहागा था,नयन नख्श की संगत ।
छोटी न अधिक लंबी, व्यवहार में पारंगत,
हर सभ्य सलीके की,बैठी थी उसमें पंगत ।
अच्छे भविष्य की भी काफी थी योजनायें
मत दीजिये हमारी बेटी को यातनायें ।
विश्वास नहीं होता लड़की से क्या वही है,
भोगी हों जैसे इसने विपदायें अनकही हैं ।
गाली गलौज के संग ज्यों मार भी सही है,
पहचान में न आती ढाँचा सी हो रही है ।
भोली है बेटी मेरी इसकी न कुछ खतायें,
मत दीजिये हमारी बेटी को यातनायें ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “