दिवंगत माताओं के लिए पितृपक्ष के मातृ नवमी के दिन श्राद्धकर्म किया जाता है। पितृपक्ष के दिनों में मृत पूर्वजों का श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है, लेकिन पितृपक्ष में मातृ नवमी के दिन दिवंगत माताओं का श्राद्ध किया जाता है।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है।
मातृ नवमी के दिन उनका श्राद्ध होता है, जिनकी मृत्यु सुहागिन के रूप में हुई हो। पुत्र के साथ पुत्रवधू भी अपनी मृतक सास या माता का तर्पण करती है।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं। इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि या अश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक पूरे सोलह दिन का समय पितृपक्ष कहलाता है।
पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार मृत पूर्वजों का श्राद्धकर्म किया जाता है, लेकिन मातृ नवमी के दिन दिवंगत माताओं, दिवंगत सुहागिन स्त्रियों और मृत अज्ञात महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है।
- अश्विन मास नवमी तिथि का प्रारंभ- रविवार 18th सितंबर शाम 04:30 से।
- अश्विन मास नवमी तिथि का समापन- सोमवार 19th सितंबर शाम 06:30 तक।
उदयातिथि के अनुसार मातृ नवमी 19th सितंबर को पड़ रही है और इसी दिन दिवंगत माताओं का श्राद्धकर्म किया जाएगा।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। इस दिन मुख्य रूप में ऐसी माताओं या परिवार की ऐसी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है, जिसकी मृत्यु सुहागिन के रूप में हुई हो।
मातृ नवमी के दिन दिवंगत मां और सास के लिए श्राद्धकर्म किए जाते हैं।
पुत्र के साथ पुत्रवधू यानी बहू भी अपनी मृतक सास या माता का तर्पण करती है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सफेद रंग के साफ कपड़े पहनें। फिर घर के दक्षिण दिशा की ओर एक चौकी रखें। चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं।
चौकी में मृत परिजन की तस्वीर रखें और फूल-माला चढ़ाएं और काले तिल का दीप जलाएं। तस्वीर पर तुलसी दल और गंगा जल अर्पित करें।
इस दिन गरुड़ पुराण, गजेंद्र मोक्ष या फिर भागवत गीता का पाठ जरूर करें। इस दिन बनाए गए सादे भोजन को सबसे पहले जिन पितरों का श्राद्ध किया जा रहा है उनके नाम से भोजन निकालकर दक्षिण दिशा में रख दें।
साथ ही गाय, कौवा, चिड़िया, चींटी और ब्राह्मण आदि के लिए भी भोजन निकाले। इसके बाद मृत परिजनों के नाम से दान जरूर करें।