मेरे आंगन के कोने में
मेरे आंगन के कोने में इक वृक्ष घना बहुतरा है,
हर शाम सुबह उनमें रहता प्यारी चिड़ियों का डेरा है ।
सर्दी के मौसम में उन पर सूरज की किरणें पड़ते ही,
अन्न ढूंढती चीं चीं कर तोड़ें कुहरे का घेरा है ।
आलस्य भगाने का उपक्रम उनकी चींचीं में रहता है,
उद्यमता को बल देता सा संदेश भरा हर पहरा है ।
प्रकृति की सुन्दर शोभा का अनुभव वो मुझे कराती हैं,
कुहराम भरे इस जीवन ने जैसे शांति को टेरा है ।
जल भर कर मिट्टी का बरतन उनकी खातिर रख छोड़ा है,
ठंडा जल पीकर खुश होतीं सुन्दर हर नया सबेरा है ।
थोड़े से चांवल के दाने प्रतिदिन मैं उनको देती हूँ,
पहचान हमारी सदियों की कहता अंतर्मन मेरा है ।
कभी दिन दो दिन को घर से मैं किसी कारण बाहर जाती हूँ,
दिन भर ना सही तो शाम सुबह यादों का रिश्ता गहरा है ।
घर आकर फिर मैं जल्दी ही उनकी चींचीं में खो जाती,
सारे तनाव मिट जाते हैं हो जाता दूर अंधेरा है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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