भाग्य ले के अपना खुद आती हैं बेटियाँ,
पत्थर जिगर को मोम बनाती हैं बेटियाँ,
भूल से मत कहिये हैं नसीब की मारी,
सोया हुआ नसीब जगाती हैं, बेटियाँ ।
घर के आँगन की हैं ये चहकती सी चिड़ियाँ,
घर का कोना-कोना चहकाती हैं बेटियाँ,
आती हुई अमराई से मीठी सी हैं बयार,
घर का जर्रा-जर्रा महकाती हैं बेटियाँ ।
किस्मत अगर दे जख्म तो मरहम हैं बेटियाँ,
हर दुआ पीहर पे लुटाती हैं बेटियाँ।
खाती हैं रूखी सूखी और पी लेती हैं पानी,
पीहर की हर कमी को छिपाती हैं बेटियाँ ।
खुश देख माता पिता को होती हैं खुश सदा,
दुख दर्द हो तो दौड़ती आती हैं बेटियाँ ।
खुशनसीब हैं वो जो करते हैं कन्यादान,
स्वर्ग की देहरी भी खुलवाती हैं बेटियाँ ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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