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      || निभा लोगी ||

      ब्याह के जाओगी जिस घर है सम्भव तभी निभा लोगी,
      अपने पति से पहले उसकी माँ को तुम अपना लोगी ।

      माँ की ममता से डूबा संसार पुत्र के दामन में,
      सिर पर हाथ फिरा कहती चढ़ आया सूरज आँगन में,
      सुखद स्पर्श माँ का लगता ज्यों चंदन खुशबू मधुबन में,
      माँ का हर व्यवहार बसा रखता बेटा अंतर्मन में,

      पति की इस स्वप्निल दुनिया को अपना स्वर्ग बना लोगी,
      अपने पति से पहले उसकी माँ को तुम अपना लोगी,

      माँ बेटे की ममता में बाधा का करना नहीं यत्न,
      बेटी बन ममता पाने का प्रतिदिन कर लेना प्रयत्न,
      गाँठ पड़े ममता में ऐसा कभी देखना ना दु:स्वप्न,
      बिना मोल ही पा जाओगी फिर तुम हीरे,मोती,रत्न,

      सुख शांति के फूलों से घर की बगिया महका लोगी,
      अपने पति से पहले उसकी माँ को तुम अपना लोगी ।

      कल तेरे बच्चे होंगे जब और बहू भी आयेगी,
      वातावरण वो जैसा आकर तेरे घर का पायेगी,
      जैसा फर्ज निभाया तमने निश्चित बहू निभायेगी,
      तेरे ममता के आँचल में काँटे न भर पायेगी,

      सेवा त्याग के अमृत से तुम सूखा भी हरया लोगी,
      अपने पति से पहले उसकी माँ को तुम अपना लोगी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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