पन्ना धाय की स्वामि भक्ति
यूँ तो कथा बहुत सी है,स्वामी भक्ति के मान की,
उनमें एक कथा है पन्ना धाय के बलिदान की ।
राणा सांगा की पत्नी जो पद्मावती कहावे थीं,
स्वाभिमान से चूर बहादुर रानी सबको भावे थीं ।
सात पुत्र में तीन बचे थे उन्हें चित्तौड़ थमावे थीं,
तीन में से भी स्वर्ग सिधारे रतन सिंह गम खावे थीं ।
दूजे बेटे विक्रमादित्य ने थामी डोरकमान की,
चापलूसी प्रिय उस राजा में कमी थी कौशल ज्ञान की ।
दासी पुत्र बनवीर के हाथों कत्ल हुए वे रात में,
अंतिम उत्तराधिकारी उदयसिंह पन्नाधाय के साथ में ।
ढूंढ रहा बनवीर उदयसिंह शस्त्र लिये था हाथ में,
स्वामिभक्ति का भाव उफन कर बैठा जज्बात में ।
स्वामिभक्ति जीती थी ममता हार गई संतान की,
उदयसिंह की जगह लगाई बाजी चंदन प्राण की ।
दूजी दासी,गुप्त राह के द्वारा उदय बचा लिया,
दुष्ट क्रूर बनवीर के हाथों अपना चंदन भरा दिया ।
उड़े खून के फव्वारे आँखों का आंसू छिपा लिया,
ममता की कुर्बानी दी इतिहास अनूठा रचा लिया ।
बचकर खुद निकली,की व्यवस्था ठौर ठिकान की,
शिक्षा-दीक्षा उदयसिंह की हुई बड़े सम्मान की ।
उचित समय पर उदयसिंह जब बैठे गद्दी शान से,
याद में चंदन वन लगवाया तब मैं से ।
उड़ती है चंदन की खुशबू गढ़ में इस अभिमान से,
झुक जाता हर मस्तक पन्नाधाय को सम्मान से ।
युगों युगों तक जलेगी बन कर दीपशिखा गुणगान की,
पन्नाधाय थी देवी,सेवा,त्याग और बलिदान की ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “