नमस्कार मित्रों,
किसी गाँव में एक परोपकारी सेठजी रहते थे परोपकारी इतने कि उनकी चौखट से कोई भी खाली हाथ वापिस नही लौटता समस्या कैसी भी हो वे सहायता अवश्य करते.
किन्तु एक दिन गांव में भीषण अकाल पड़ गया, सेठजी ने सहायता हेतु समस्त धन लुटा दिया, लेकिन भीषण अकाल की वजह से उन्हें भी गांव छोड़कर दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान करना पड़ा.
सेठ जी अपने पत्नी बच्चों के साथ बचा खुचा खाने पीने का सामान लेकर चल दिये. रास्ते मे एक बड़ा रेगिस्तान गुजरा. चलते चलते सेठजी का सारा पीने का पानी समाप्त हो गया.
प्यास से व्याकुल परिवार देखकर सेठजी ने ईश्वर से सहायता की प्रार्थना की.
कुछ ही देर में एक आदमी दूर से आता हुआ दिखाई दिया.
उसने सेठजी को बताया समीप ही मीठे जल का स्त्रोत है.
सेठजी परिवार को वही रुकने का कहकर तेजी से जलपात्र लेकर जलस्त्रोत की दौड़ पड़े.
लेकिन जैसे ही वे जल भरकर लौट रहे थे मार्ग में एक प्यास से व्याकुल व्यक्ति दिखाई दिया, उसने सेठजी से जल मांगा.
परोपकारी सेठजी उसे जल पिलाकर पुनः परिवार के लिए जल भरने जलस्रोत की और दौड़ पड़े.
लेकिन जब वे लौटे तो वही घटना घटित हुई, सेठजी पुनः जल पिलाकर जलस्रोत की दौड़े.
ये घटना बार बार हुई औऱ हरबार सेठजी परोपकार करते रहे.
अंततः कुछ समय पश्चात सेठजी जल लेकर परिवार के पास पहुंचे लेकिन जबतक प्यास से व्याकुल परिवार सेठ जी की प्रतीक्षा करते करते दम तोड़ चुका था.
परिवार की हालत देख सेठजी ने भी रोते बिलखते दम तोड़ दिया.
कर्मानुसार सेठजी स्वर्ग पहुंचे किन्तु परिवार की दर्दनाक म्रत्यु पर वे रूष्ट होकर बोले: प्रभु मैंने जीवनभर केवल परोपकार किया तब भी मुझे और मेरे परिवार को दुःखद म्रत्यु क्यों प्राप्त हुई ?
भगवान मुस्कुराते हुए बोले: इसके लिए भी तुम्हारे ही कर्म जिम्मेदार है.
तुम्हें क्या आवश्यकता थी सभी को अपने परिवार के लिए भरा गया जल पिलाने की.
स्मरण करो जब तुमने मुझसे सहायता मांगी तो क्या मैंने तुम्हें जल भरकर पिलाया ?
नही ना अपितु मैंने तुम्हें जलस्रोत का मार्ग बताया.
यही कार्य तुम भी कर सकते थे जिससे सबकी सहायता हो जाती और तुम्हारे परिवार भी जल पीकर जीवित रहता.
तुमने जो किया उसे परोपकार नही मूर्खता कहते है.
परोपकार और मूर्खता में अंतर है.
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.