मोर
बरसी बूँदें नाचा मोर,
बरखा का हर दिशा है शोर।
बरखा की बूँदों ने गाया,
गीत सुहाना हर मन भाया,
भंवरे, गुंजन करते भागे,
जुगनू अपनी नींद से जागे,
पुरबा आई दिया हिलोर,
बरसी बूँदें नाचा मोर।
पपीहरा ने राग जो छेड़ा,
धड़क उठा मन मेरा, तेरा,
हरयाली की करधन चमकी,
बिजली – बादल गरजी धमकी,
चली हवा महकी चित चोर,
बरसी बूँदें नाचा मोर।
झूले सावन के बागों में,
गायें रंगरलियां रागों में,
तन महके मन उड़-उड़ जाये,
कहीं सपेरा बीन बजाये,
जियरा झूमे हुआ विभोर,
बरसी बूँदें नाचा मोर।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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