फूल और सुगंध ओढ़े ऋतु ये महान है
फूल और सुगंध ओढ़े ऋतु ये महान है,
अंग-अंग करें जिसमें मस्ती बखान है,
थिरक-थिरक नाच रहे मोर भी बगियन में,
आ गया बसंत ये सबको ही भान है ।
मीठी-मीठी धूप से है कलियों को चटकाता,
भला लगे फूलों को अब दिनमान है,
वृक्षों से लिपट-लिपट करती आलिंगन है,
इठलाती लताओं की मधु मुस्कान है ।
रति संग कामदेव नाच रहे ठुमक-ठुमक,
प्रेमी जनों में तरंगित सी तान है,
बीच-बीच बादल की लट जैसे उलझी सी,
प्रकृति ने पहना बासंती परिधान है ।
तार-तार कर देते बज्र व पाषाण हृदय,
रमणी के नयनों से निकले जो बाण है,
अमराई की बौर छूकर जो आई हवा,
रसिकों का चूर-चूर करे अभिमान है ।
कोयल की कुहू-कुहू हूक भरे प्रेमियों में,
प्रियतम में लगा रहे प्रतिक्षण ही ध्यान है,
टेसू के रंग रंगी प्रिया अति कामिनी सी,
उर में उमंग लिये तीर की कमान है ।
बिना पिये मदिरा का नशा दिखे अखियन में,
अलसाई देह राशि बहके से प्राण हैं,
ऐसी मिठास भरी पैनी बसंत ऋतु,
उतरे जो धरती पे लुटे भगवान है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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